बस्ती जिले के प्रगतिशील किसान चंद्रभान तिवारी पिछले 7 साल से ड्रैगन फ्रूट की खेती कर रहे हैं। चंद्रभान तिवारी बताते हैं कि उन्हें ड्रैगन फ्रूट की खेती की प्रेरणा गुजरात से मिली, जहां वे अपने बच्चों के साथ रहते थे। उनके गुजरात निवास क्षेत्र में ड्रैगन फ्रूट की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी।
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ड्रैगन फ्रूट की खेती का सफर
अपने गृह जिला बस्ती के गांव चंदा बुजुर्ग जो पचपेड़वा लौटने के बाद, उन्होंने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की। रासायनिक मुक्त जैविक खेती उनके प्राथमिकताओं में शामिल है। उन्होंने आगे बताया कि वह प्राकृतिक उर्वरकों जैसे गाय के मूत्र, गोबर की खाद, कंपोस्ट आदि का उपयोग करते हैं।
खेती की प्रेरणा और यात्रा
चंद्रभान तिवारी बताते हैं कि उनके बच्चे गुजरात में रहते हैं। कभी-कभी वह अपने बच्चों से मिलने गुजरात भी जाते हैं। 7 साल पहले, उन्हें वहां से ड्रैगन फ्रूट की खेती की प्रेरणा मिली, जहां उनके बच्चे रहते हैं। वहां ड्रैगन फ्रूट की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती में लागत और मुनाफा
किसान ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में पहली बार लागत लगती है, जो खेत की घेराबंदी और पौधों को सहारा देने के लिए संरचना बनाने में खर्च होती है। एक बार पौधा लग जाने के बाद, लागत शून्य हो जाती है। यह जुलाई से जुलाई तक चार महीने में चार बार फसल देता है।
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उन्होंने बताया कि जब एक पौधा वयस्क हो जाता है, तो वह 25 किलो तक फल देता है। चंद्रभान तिवारी के घर से फल 250 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है। अगर कोई इस फल को बाजार से खरीदता है, तो एक ड्रैगन फ्रूट की कीमत 150 रुपये होती है।
एक समय की निवेश वाली फसल
किसान ने बताया कि एक फसल लगाने के बाद, वह बिना किसी लागत के एक साल में 50 से 60 हजार रुपये तक कमा लेते हैं, जबकि एक बीघा में पारंपरिक गन्ने की फसल लगाने के बाद भी उन्हें उतने पैसे नहीं मिलते। यह फसल एक बार निवेश करने वाली फसल है। शुरुआत में लागत लगती है, उसके बाद कोई लागत नहीं लगती। केवल उत्पादन लेना होता है।
चंद्रभान तिवारी की यह कहानी दिखाती है कि कैसे पारंपरिक खेती से हटकर नए फसल की खेती करके किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं और जैविक खेती को बढ़ावा दे सकते हैं। उनकी मेहनत और समझदारी से की गई ड्रैगन फ्रूट की खेती एक सफल उदाहरण है जो अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत बन सकती है।